पूरा विश्व कोरोना के संक्रमण से जूझ रहा है। इसमें भारत भी शामिल है और उत्तराखंड भी। शुरुआती दौर में लगा था कि उत्तराखंड इस वैश्विक महामारी से अछूता रहेगा या कम प्रभावित होगा। राज्य में 15 मार्च को कोरोना का पहला पॉजिटिव मामला सामने आने के बाद भी यह उम्मीद बनी रही, क्योंकि यह मामला विदेशी भ्रमण से लौटे एक आईएफएस ट्रेनी का था। बाद के दौर में भी काफी समय तक जो पॉजिटिव मामले सामने आये उनकी ट्रैवल हिस्ट्री थी। लेकिन, राज्य के संक्रमण से मुक्त रहने की उम्मीद ज्यादा समय तक नहीं टिकी। बाद के दौर में राज्य का कोई जिला ऐसा नहीं बचा जहां पॉजिटिव केस न मिले हों।

22 जून को राज्य में कोरोना का 100 दिन का सफर पूरा हो चुका है। अभी तक 60000 टेस्ट करने के बाद 2800 से ज्यादा संक्रमित लोगों की पहचान हुई है। 2100 से ज्यादा का उपचार हो चुका है और 39  लोगों की मृत्यु हुई है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए अब हमें गहन मंथन करने की जरूरत है। संक्रमण के इस दौर ने हमें समझा दिया है कि हम कहां कमजोर हैं
 और कहां हमारी स्थिति बेहतर है। अब कमजोर कड़ियों को मजबूत और बेहतर कड़ियों को और मजबूत करने की जरूरत है। हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि आगे के लिए जो भी रणनीति बने वह कोरोना ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड मे पूरे पब्लिक हेल्थ सेक्टर को ध्यान में रखते हुए बनाई जाए।

पिछले दिनों प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए चार चीजों को जरूरी बताया- हेल्थ इंफ्राॅस्ट्रक्चर, इंफाॅर्मेशन सिस्टम, इमोशनल सपोर्ट और पब्लिक पार्टिसिपेशन। इन बातों को ध्यान में रखते हुए मैं उत्तराखंड की परिस्थितियों के मद्देनज़र सुझाव के तौर पर एक पब्लिक हेल्थ माॅडल पर बात करना चाहता हूं, जिसे मैंने ‘संभव’ नाम दिया है। एस- सैंपलिंग, ए-अवेयरनेस, एम- मैपिंग, बी- बिहेवियर चेंज, एच- ह्यूमन रिसोर्सेज, ए- एसेट्स और वी-विजनरी।
सबसे पहले सैंपलिंग की बात करें तो शुरुआती सुस्ती के बाद उत्तराखंड में टेस्टिंग बढ़ी है, बावजूद इसके राज्य टेस्टिंग में राष्ट्रीय औसत से 17 प्रतिशत पीछे है। उत्तराखंड मे कोरोना के 100 दिन पूरे होने पर देश में प्रति 10 लाख की आबादी पर औसतन 5,287 टेस्ट हुए, जबकि उत्तराखंड में यह औसत 4,370 रहा । 11 हिमालयी राज्यों से तुलना करें तो प्रति 10 लाख की आबादी पर की गई टेस्टिंग में उत्तराखंड की 10वीं रैंकहै। जाहिर है हमें टेस्टिंग बढ़ानी होगी। अवेयरनेस यानी जागरूकता- आज की स्थितियों में जागरूकता के लिए कठोर अभिभावक की तरह नहीं, बल्कि सहृदय मित्र की तरह पेश आना होगा। लोगों को इमोशनल सपोर्ट की जरूरत है, ऐसा हम अच्छा दोस्त बनकर ही कर सकते हैं।
 

मैपिंग यानी लोगों से संपर्क के मामले में कर्नाटक ने बहुत शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है। देहरादून जैसे करीब 20 लाख की आबादी वाले जिले में भी इस मामले में बेहतर काम हुआ है और अभी तक करीब 12 लाख लोगों का कम्युनिटी सर्विलांस किया गया है । बिहेयवियर चेंज कोरोना के साथ लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हथियार है। मास्क पहनना, फिजिकल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना, बार-बार हाथ धोना और सेनिटाइज इस्तेमाल करना लोगों की मूल आदत में शामिल करना होगा। इस मामले में मेघालय ने बेहतर माॅडल बनाया है। जिसमें लोगों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- 65 वर्ष से अधिक उम्र वाले, बीमारियों से ग्रसित लोग और लगातार घरों से बाहर निकलने वाले लोग। ऐसा ही कोई माॅडल उत्तराखंड के लिए भी जरूरी है।

मानव संसाधन का उचित उपयोग कोरोना और अन्य किसी भी लड़ाई के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। हमें किस तरह ट्रेनिंग देनी है और पब्लिक हेल्थ के मोर्चे पर योग्यता के अनुसार किस तरह स्वास्थ्य कर्मियों का उपयोग करना है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। एसेट्स यानी हमारे पास कोरोना की लड़ाई लड़ने के लिए क्या संसाधन हैं। कोरोना और पब्लिक हेल्थ से जुड़े मामलों में हाॅस्पिटल्स, दवाइयाँ, बेड, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन आदि एसेट्स की जरूरत होगी।

 
विजनरी की बात करें तो यह लड़ाई हम सिर्फ सचिवालय और निदेशालय स्तर पर नहीं लड़ सकते। इस मोर्चे के लिए हमें अपनी स्वास्थ्य की टीम में विविधता लानी होगी। इस टीम में विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिक, सूचना तकनीकी विशेषज्ञ, समाजशास्त्री, पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञ, डेटा एनालिसिस्ट, मास्टर ट्रेनर आदि शामिल करने होंगे। यदि ‘संभव’ माॅडल पर काम किया जाए तो मुझे उम्मीद है कि न सिर्फ कोरोना बल्कि पब्लिक हेल्थ से जुड़े तमाम पहलुओं पर उत्तराखंड का प्रदर्शन और बेहतर हो सकेगा।
Author is the Founder Chairperson of SDC Foundation. He tweets at @AnoopNautiyal1. 
Support our research and communication on the ecological affairs of mountain states in India. Your support will ensure our independence and credibility.

Donate Now