तमाम प्रयासों के बाद भी सिंगल यूज़ प्लास्टिक आज भारत सहित पूरे विश्व के समक्ष एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। विश्वभर में इस्तेमाल किये जाने वाले कुल प्लास्टिक का एक बड़ा हिस्सा कचरे के रूप में फैला हुआ है। यह आमतौर पर सिंगल यूज़ प्लास्टिक है और यही प्लास्टिक विश्व के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा है। लगातार फैल रहे प्लास्टिक कचरे को रोकने के लिए देश भर में लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। इसके बावजूद हमारे चारों ओर यह कचरा लगातार बढ़ता जा रहा है।
भारत लगातार आर्थिक और तकनीकी संपन्न राष्ट्र बनने की दिशा मे अग्रसर है। प्लास्टिक उन्मूलन अभियान में भी भारत को विश्व समुदाय के समक्ष अग्रणी भूमिका निभाने की आवश्यकता है। ऐसा करना असंभव नहीं है, बशर्ते कि इस अभियान में जनभागीदारी के साथ ही बाजार की भागीदारी सुनिश्चत करके इसे एक जन आंदोलन का रूप दिया जाए। प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए सतत कार्ययोजना की तो आवश्यकता है और इसके लिए जरूरी है कि आम जनमानस को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया जाए।
ये तो तय है की सरकार की कोई भी योजना जन भागीदारी के बिना सफल नहीं हो सकती। इस अवधारणा के दृष्टिगत देश मे प्लास्टिक बैंक की स्थापना एक कारगर उपाय हो सकता है। प्लास्टिक बैंकों के माध्यम से घरों, कार्यालयों और अन्य संस्थानों का प्लास्टिक कचरा एकत्रित करके इसे उचित माध्यम से रिसाइकिल करने का रास्ता निकाला जा सकता है। प्लास्टिक बैंक में जनभागीदारी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और बेहद सरल प्रक्रिया होने के कारण यह प्रयोग प्लास्टिक निस्तारण के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है।
प्लास्टिक बैंक शिक्षक संस्थानों, सरकारी व निजी कार्यालयों, अस्पतालों, बाजारों आदि में स्थापित किये जा सकते हैं। इन्हें संचालित करने में स्थानीय नगर निकाय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। प्लास्टिक का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों की भी इस काम में सहायता ली जा सकती है। प्लास्टिक कचरा निस्तारण अधिनियम के तहत ये कंपनियां प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए जिम्मेदार हैं। इस तरह से सरकार, समाज और बाजार के सहयोग से प्लास्टिक बैंकों की स्थापना कर प्लास्टिक कचरे की समस्या दूर करने के सफलता हासिल की जा सकती है।
देहरादून शहर में प्लास्टिक बैंकों की स्थापना का कार्य तेजी से शुरू हुआ है । कोरोनाकाल से पहले 10 प्लास्टिक बैंक स्थापित हो चुके थे और इनके माध्यम से 3 महीने के दौरान लगभग 3 हजार किलोग्राम प्लास्टिक कचरा भारतीय पेट्रोलियम संस्थान देहरादून के हवाले किया जा चुका है । भारतीय पेट्रोलियम संस्थान इस कचरे का उपयोग डीजल बनाने के लिए कर रहा है। देश भर मे ऐसे सतत और सरल प्रयोगों से बदलाव लाया जा सकता है ।
(लेखक एस.डी.सी फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं । वह @Anoopnautiyal1 पर ट्वीट करते हैं )