इस वर्ष हम ऐसी परिस्थितियों में विश्व जल दिवस मना रहे हैं, जबकि पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है। विश्वभर में हजारों लोगों को यह वाइरस जानें ले चुका है और अब भी कई देशों में तेजी से फैल रहा है। भारत सहित विश्व की तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाएं बुरी तरह से लड़खड़ा रही हैं। कोराना वाइरस से बचाव का अब तक कोई टीका नहीं बन पाया है और न ही इसकी कोई दवा अभी ईजाद हो पाई है। ऐसी स्थिति में इससे बचाव की पूरी जिम्मेदारी एक बार फिर पानी की ऊपर आ गई है। कहा जा रहा है कि बार-बार साबुन से हाथ धोने और सेनिटाइजर इस्तेमाल करने से ही इस वाइरस के संक्रमण से बचा जा सकता है। ऐस समय में जबकि हम एक-एक बूंद पानी बचाने की मुहिम चला रहे थे, लोगों को थोड़ी-थोड़ी देर बाद हाथ धोने की सलाह दी जा रही है।

शुक्र है कि मनुष्य के पास अभी इतना पानी मौजूद है कि वह पानी की अपनी जरूरतें किसी तरह पूरी करके थोड़ी-थोड़ी देर बाद हाथ धो सकता है। लेकिन, ये स्थितियां बहुत दिनों तक नहीं रहने वाली हैं। क्योंकि विश्व के तमाम देशों में पानी जी जरूरत लगातार बढ़ रही है और जले स्रोत लगातार कम होते जा रहे हैं। सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय गतिविधियों में जल की महत्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद इसके प्रबंधन के लिए जरूरी कदम तक नहीं उठाये जा रहे हैं।

जल को लेकर लेकर भारत में भी स्थितियां बेहद खतरनाक हैं। भारत में विश्व का मात्र 4 प्रतिशत पीने योग्य पानी है, जबकि यहां विश्व की 18 प्रतिशत आबादी यहां रहती है। इसमें भी सबसे मुश्किल यह है कि भारत में उपलब्ध ताजे अर्थात् पीने योग्य पानी के 78 प्रतिशत हिस्से का उपयोग सिंचाई कार्यों में किया जा रहा है। सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाने वाले पानी का 63 प्रतिशत भूमिगत जल होता है। समस्या यह है कि भूमिगत जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है और पंजाब जैसे राज्य में भूमिगत जलस्तर खतरे की स्थिति तक गिर चुका है।

हिमालयी राज्यों की स्थिति भी बेहद खराब

हिमालयी ग्लेशियर भारत का सबसे बड़ा वाटर स्टोरेज माने जाते हैं। इन ग्लेशियरों से कई सदानीरा नदियां निकलती हैं, जो देश के एक बड़े हिस्से की पानी की जरूरतें पूरी करती हैं, लेकिन पेयजल के मामले में देश के हिमालयी राज्यों की स्थिति लगातार खराब हो रही है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी राज्य उत्तराखंड में पिछले 300 वर्षों में 150 जलस्रोत सूख गये हैं। यानी हर साल औसतन दो जलस्रोत सूख रहे हैं। उत्तराखंड जल संस्थान की रिपोर्ट कहती है कि फिलहाल राज्य के 500 जलस्रोत सूखने की कगार पर हैं। राज्य की 512 पेयजल परियोजना में पानी की आपूर्ति में 50 से 90 प्रतिषत तक की कमी की बात भी कही गई है।

जल संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार जलस्रोतों में पानी कम हो जाने के कारण जिन 512 पेयजल योजनाओं में पानी की आपूर्ति में 50 से 90 प्रतिशत तक गिरावट आई है, उनमें सबसे ज्यादा 185 योजनाएं पौड़ी जिले में हैं। नैनीताल में ऐसी योजनाओं की संख्या 25 है। इसके अलावा जल संस्थान ने राज्य में सबसे अधिक जल संकट वाले 1544 क्षेत्र चिन्हित किये हैं, इनमें सबसे ज्यादा 391 क्षेत्र देहरादून जिले में हैं। नैनीताल जिले में ऐसे क्षेत्रों की संख्या 240 आंकी गई है। टिहरी में 169, अल्मोड़ा में 179, पौड़ी में 112, पिथौरागढ़ में 82, चंपावत में 78, रुद्रप्रयाग में 67, चमोली में 60, उत्तरकाशी में 57, हरिद्वार में 46, बागेश्वर में 37 और ऊधमसिंह नगर जिले में 26 क्षेत्रों को अत्यधिक जल संकट वाले क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है।

(लेखक हिमालयी और पर्यावरण मुद्दों के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

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