वर्ष 2003-4 की गर्मियों की बात है अल्मोड़ा शहर की लाइफ लाइन कही जाने वाली कोसी नदी में पानी का प्रवाह अपने सामान्य प्रवाह 1400 लीटर प्रति सेकंड से घटकर 95 ली प्रति सेकंड रह गया था, पानी का स्तर घटने से कोसी नदी से अल्मोड़ा शहर को पानी की आपूर्ति करने वाले पंपों ने काम करना बंद कर दिया और अल्मोड़ा शहर तीन दिनों तक पानी की आपूर्ति न हो पाने से शहर में हाहाकार मच गया था।ऐसा ही कुछ दृश्य शहर से 30 किलोमीटर दूर स्याही देवी शीतलाखेत आरक्षित वन क्षेत्र, जिससे वर्ष 1926में अल्मोड़ा शहर को सबसे पहली पेयजल योजना बनाई गई साथ ही इसी जंगल से निकटवर्ती 40 से अधिक गांवों को लगभग 100 इंच पानी की आपूर्ति होती है, में भी देखा जा सकता था। पानी के इस अभूतपूर्व संकट से विचलित होकर क्षेत्र के कुछ युवाओं गजेन्द्र पाठक, गिरीश चन्द्र शर्मा,गणेश पाठक, हरीश बिष्ट, रमेश भंडारी, कैलाश नाथ, स्वर्गीय प्रकाश पाठक स्वर्गीय पीयूष चंद, ललित बिष्ट,पूरन सिंह नेगी ,धीरज मर्तोलिया , गिरीश राम,भोला राम आदि ने स्याही देवी विकास मंच, शीतलाखेत ( मंच)का गठन कर पानी के संकट के कारण खोजने की कोशिश की।
मंच के सदस्यों ने पाया कि
1 - किसी भी प्रकार के उचित विकल्प के अभाव में जलौनी लकड़ी और कृषि उपकरणों हल,नहेड़,दनेला आदि के लिए चौड़ी पत्ती प्रजाति के पेड़ों बांज, बुरांस, उतीस, काफल आदि का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक दोहन किया जा रहा है।
2 - हर साल गर्मियों में जंगलों में आग लग रही है और जनता आग से असंपृक्त है। दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों,सीमित संसाधनों और कम स्टाफ के कारण वन विभाग के लिए वनाग्नि पर पूर्ण नियंत्रण संभव नहीं हो रहा है।
चूंकि पर्वतीय इलाकों में मिश्रित जंगलों में ही जल स्रोत पाये जाते हैं और इन्ही मिश्रित जंगलों का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक दोहन होने और हर साल गर्मियों में आग लगने से जल स्त्रोतों में पानी का स्तर कम हो रहा था।
कारण की पहचान करने के बाद मंच ने वन विभाग के साथ मिलकर जंगल बचाओ-जीवन बचाओ अभियान आरंभ करने का निर्णय लिया।
मंच के सदस्यों ने वन विभाग के कर्मचारियों रूप सिंह और रंजीत सिंह के साथ मिलकर सल्ला रौतेला,नौला,मटीला,धामस,भाकड़,खरकिया, मटीला, सूरी, गड़सारी, पड्यूला, बरसीला,सड़का, छिपडि़या ,हरडा़ ,पतलिया, स्याही देवी आदि गांवों में महिलाओं के साथ मिलकर चौड़ी पत्ती प्रजाति के पेड़ों को बचाने के लिए जागरुकता गोष्ठियों का आयोजन आरंभ किया।
लगातार दो तीन सालों तक महिलाओं को चौड़ी पत्ती प्रजाति के पेड़ों का जल संरक्षण की दृष्टि से महत्व समझाने के बाद महिलाएं जलौनी लकड़ी के लिए चौड़ी पत्ती प्रजाति के पेड़ों का दोहन न करने पर राजी हो गयी साथ ही जंगलों में आग न लगने देने,आग बुझाने और रास्तों से पीरूल और बांज की पत्तियों को साफ कर फायर लाईन की सफाई में मंच और वन विभाग को सहयोग देने लगीं। वर्ष 2012 में शीतलाखेत अनुभाग में नियुक्त कर्तव्यनिष्ठ वन बीट अधिकारी श्री कुबेर चंद द्वारा रौन, डाल क्षेत्र की महिलाओं को जंगल बचाओ-जीवन बचाओ अभियान से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महिलाओं में बढ़ती जागरूकता को देखते हुए मंच ने वर्ष 2005 में रामनवमी के दिन सभी महिलाओं की एक बैठक स्याहीदेवी मंदिर में बुलाई और सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर स्याहीदेवी शीतलाखेत के जंगल को आने वाले पांच वर्षों के लिए आराध्य देवी स्याही देवी को समर्पित करने का निर्णय लिया। इस निर्णय के बाद जंगलों की स्थिति में तेजी से सुधार होने लगा,इसी दौर में वन विभाग ने मंच की मांग पर इस क्षेत्र में वर्षा जल संग्रहण के लिए चाल,खाल और गड्ढे बनाने आरंभ किए।
जलौनी लकड़ी के लिए चौड़ी पत्ती प्रजाति पेड़ों का दोहन रूकने और वनाग्नि की घटनाओं में कमी आने से ए एन आर पद्धति से जंगल विकसित होने लगा। जागरूकता अभियान को जारी रखते हुए मंच द्वारा वन विभाग को साथ लेकर प्रतिवर्ष रामनवमी/ विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जागरूकता गोष्ठियों का हर साल आयोजन किया जिसमें जनप्रतिनिधियों और वन विभाग के उच्च अधिकारियों को आमंत्रित किया गया।ऐसी ही एक जागरूकता गोष्ठी में वर्ष 2009 मे तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी श्री एस.के.बनर्जी ने घोषणा की कि यदि अगले वर्ष शीतलाखेत क्षेत्र के जंगलों में आग नहीं लगी तो प्रत्येक ग्राम सभा को पांच हजार रुपए ईनाम दिया जायेगा।
मंच और महिला मंगल दलों ने इसे एक चुनौती के रुप में लिया और वन विभाग के स्थानीय कर्मचारियों के साथ मिलकर उस वर्ष लगातार रास्तों की सफाई करते रहे कहीं भी आग लगने की कोई घटना हुई तो उसे पहले आधे घण्टे में ही नियंत्रित कर लिया जिससे उस साल जंगल में आग लगने की कोई बड़ी घटना नहीं हुई। प्रभागीय वनाधिकारी ने अपना वादा निभाया और क्षेत्र की 10 ग्राम सभाओं को पांच पांच हजार रुपए ईनाम के तौर पर दिये।
दूसरी तरफ किसानों द्वारा लगातार मांग की जाती रही कि लकड़ी के हल के निर्माण के लिए कटने वाले बांज के बड़े पेड़ों को बचाना तब तक संभव नहीं हो पायेगा जब तक उन्हें कोई उचित विकल्प नहीं मिलता। स्याही देवी -शीतलाखेत क्षेत्र का यह जंगल निकटवर्ती गांवों के किसानों की कृषि उपकरण संबंधी जरूरतों का मुख्य स्रोत था और हर साल सैंकड़ों की संख्या में बांज,फल्यांट,उतीस आदि पेड़ों को काटकर कृषि उपकरणों का निर्माण करना किसानों की मजबूरी थी।
लकड़ी के परंपरागत हल के उपयुक्त विकल्प की खोज में मंच ने बहुत प्रयास किये।
वर्ष 2012 में विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के निदेशक डॉ जे.सी. भट्ट द्वारा इस दिशा में काम करने के आदेश जारी किए और संस्थान में कार्यरत वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी श्री शिव सिंह खेतवाल ने इस दिशा में काम आरंभ कर दिया।
वर्ष 2012 में संस्थान और मंच की सहभागिता से विकसित" वी एल स्याही हल" के प्रथम प्रारूप का लोकार्पण किया गया। इसी वर्ष जिला प्रशासन अल्मोड़ा के सहयोग से वी एल स्याही हल का परिष्कृत माडल विकसित करने के लिए उत्तराखंड शासन द्वारा जिला नवाचार योजना के अंतर्गत जिला अल्मोड़ा में 500 हलों के वितरण के लिए एक प्रोजेक्ट मंजूर किया।
मंच के सदस्यों द्वारा अल्मोड़ा जिले में वी एल स्याही हल यात्रा निकाली गई और 23 से अधिक स्थानों पर वी एल स्याही हल का किसानों के बीच खेत में प्रदर्शन किया और किसानों के सुझावों को शामिल करते हुए वी एल स्याही हल को परिष्कृत किया गया।
परिष्कृत माडल विकसित होने के बावजूद पीढ़ियों से लकड़ी के हल का प्रयोग कर रहे किसानों ने 700 रूपए की कीमत के लोहे के हल का इस्तेमाल करने में हिचकिचाहट दिखाई। ऐसे में मंच ने ईकोपाथ,मयूर स्वीट्स रानीखेत, डिस्कवरी, श्री चंदन डांगी, श्री कमल कर्नाटक आदि दानदाताओं से चंदा इकट्ठा कर किसानों को कम कीमत पर और लाटरी के माध्यम से कम कीमत पर वी एल स्याही हल दिये।
लकड़ी के हल से हल्के, सस्ते, टिकाऊ और मजबूत वी एल स्याही हल ने धीरे धीरे किसानों के बीच जगह बनानी शुरू की और आज इस जंगल के चारों ओर बसे गांवों के 90 प्रतिशत से अधिक किसानों द्वारा लकड़ी का हल छोड़कर वी एल स्याही हल का इस्तेमाल आरंभ कर दिया गया है जिससे हर साल सैंकड़ों की संख्या में बांज के बड़े पेड़ों को बचाने में कामयाबी मिल पायी है। इस हल का फाल विकसित करने में संस्थान के वैज्ञानिक डा श्यामनाथ और ग्रामोद्योग विकास संस्थान ढैंली के मुख्य सलाहकार श्री चन्दन डांगी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अल्मोड़ा जनपद के अलावा वी एल स्याही हल चमोली, टिहरी, पिथौरागढ़, पौड़ी, बागेश्वर, देहरादून जिलों में 8,000 से अधिक किसानों की पसंद बन गया है।
वर्ष 2018 में यूसर्क के सहयोग से शीतलाखेत में आयोजित कार्यक्रम में क्षेत्रीय विधायक श्रीमती रेखा आर्या को गैस की गाड़ी के अभाव में जलौनी लकड़ी के लिए मजबूरी में हो रहे जंगलों के दोहन की ओर ध्यानाकर्षण किया गया तो उनके द्वारा मटीला गांव तक नियमित रूप से गैस की गाड़ी की व्यवस्था की गई जिसने जंगलों के दोहन में उल्लेखनीय कमी लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इस बीच वर्ष 2012 और 2016 की भीषण वनाग्नि के दौर में इस वन क्षेत्र में भी नुकसान हुआ मगर हर बार महिला मंगल दलों और वन विभाग, युवाओं, जनप्रतिनिधियों, ,लीसा ठेकेदारों के साथ मिलकर जंगल को आग से बचाने के प्रयास जारी रहे।
लगातार अध्ययन करने के बाद यह देखा गया कि वनाग्नि का सबसे बड़ा कारण ओण जलाने में बरती जाने वाली असावधानी ह खरीफ की फसल के लिए खेत तैयार करने के दौरान खेत की मेड़ पर उग आई कांटेदार झाड़ियों, खरपतवारों को काटकर, सुखाकर रख दिया जाता है जिसे ओण/आडा़/केडा़ कहा जाता है। उत्तराखंड के हजारों गांवों के लाखों परिवारों द्वारा फरवरी महीने से जून माह तक ओण जलाने की कार्रवाई की जाती है अधिकांश मामलों में महिलाएं ओण जलाने में सतर्क रहती हैं परन्तु बहुत से मामलों में ओण की आग निकटवर्ती खेतों, आरक्षित/पंचायती/सिविल वनों में प्रवेश कर वनाग्नि दुर्घटनाओं को जन्म देती हैं।
वर्ष 2020 में अल्मोड़ा वन प्रभाग में प्रभागीय वनाधिकारी के रूप में श्री महातिम यादव द्वारा चार्ज लिया गया।2017 बैच के भारतीय वन सेवा के अधिकारी श्री यादव द्वारा पूरे जनपद का फील्ड विजिट करने के बाद पाया कि शीतलाखेत-स्याहीदेवी आरक्षित वन क्षेत्र के जंगलों की स्थिति जनपद के अन्य जंगलों के मुकाबले बेहतर है और स्थानीय जनता जंगलों के संरक्षण और संवर्धन में वन विभाग को सहयोग देती आ रही है। शीतलाखेत स्याही देवी क्षेत्र के जंगलों के बारे में जागरूकता पैदा करने हेतु श्री यादव द्वारा अल्मोड़ा से शीतलाखेत तक पैदल यात्रा की और इस क्षेत्र को ईको टूरिज्म के रूप में विकसित करने के लिए एक कार्ययोजना का निर्माण भी किया। आई टी बी पी की स्थानीय इकाई को जंगल की रक्षा से जोड़ा। श्री यादव के आने के बाद जनता और वन विभाग के आपसी संबंधों में और सुधार आया। प्रभागीय वनाधिकारी की पहल पर पहली बार जिला प्रशासन द्वारा वन विभाग को वनाग्नि प्रबंधन हेतु 14 वाहन और 20 लाख रुपए दिए जो कि बेहद उत्साहजनक है। 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस पर वन विभाग द्वारा शीतलाखेत में जागरूकता रैली निकाली गई और कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें बहुत से संगठनों, ग्रामीणों, महिलाओं द्वारा प्रतिभाग किया गया।
*ओण दिवस* ओण जलाने की परंपरा के कारण वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि होने के कारण ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध और व्यवस्थित करने की जरूरत थी।
28 मार्च 2020 को ग्रामोद्योग विकास संस्थान, ढैंली, अल्मोड़ा द्वारा सूरी, गड़सारी और मटीला गांवों में महिलाओं के साथ बैठक की और ओण जलाने से बढ़ती वनाग्नि दुर्घटनाओं पर चिंता जताई।
संस्थान के सलाहकार गजेन्द्र पाठक द्वारा प्रतिवर्ष 1 अप्रैल को ओण दिवस के रूप में मनाये जाने का सुझाव दिया जिसे महिलाओं द्वारा मान लिया गया।यह तय किया गया कि प्रतिवर्ष 1 अप्रैल तक ओण जलाने की कार्रवाई कर ली जाएगी ताकि अप्रैल, मई और जून के महीनों में, जब तापमान बढ़ जाता है,तेज हवाएं चलती हैं और चीड़ के पेड़ों में पतझड़ होने से जंगलों में पीरूल अधिक मात्रा में जमा हो जाता है,आग लगने की घटनाओं में कमी लाई जा सके। प्रभागीय वनाधिकारी अल्मोड़ा द्वारा ओण दिवस के आयोजन पर सहमति व्यक्त करते हुए वन विभाग की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।
निर्धारित तिथि 1 अप्रैल को मटीला और सूरी गांव में ओण दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मटीला में महिलाओं द्वारा प्रतीकात्मक रूप से ओण जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की और फिर मटीला से सूरी गांव तक वनाग्नि जागरूकता रैली का आयोजन किया गया।सूरी में आयोजित कार्यक्रम में खरकिया, मटीला, पड्यूला, बरसीला, डोल,सूरी, गड़़सारी,जाला गांवों की लगभग तीन सौ महिलाओं द्वारा शपथ ली गई कि" प्रतिवर्ष ओण जलाने की कार्रवाई 1 अप्रैल तक पूरी कर ली जाएगी ताकि जंगलों को आग से सुरक्षित रखा जा सके"
कार्यक्रम में मुख्य विकास अधिकारी अल्मोड़ा श्री नवनीत पाण्डे,श्री चंदन डांगी ,श्री आर डी जोशी ने भी प्रतिभाग किया ग्रामोद्योग विकास संस्थान, ढैंली, सेवा भारत संचालित नवनीति सेवा केंद्र सूरी,प्लस एप्रोच फाउंडेशन, नई दिल्ली और नौला फाउंडेशन द्वारा ओण दिवस के आयोजन में सहयोग दिया गया।
इस बीच जिला प्रशासन, वन प्रभाग अल्मोड़ा, प्रोफेसर दुर्गेश पंत जो जंगल बचाओ-जीवन बचाओ अभियान को वर्ष 2003-4 से सहयोग दे रहे हैं, संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती रीमा पंत, समाजसेवी श्री अनूप नौटियाल द्वारा शीतलाखेत क्षेत्र में वन विभाग और जनता के परस्पर सहयोग से जंगलों को बचाने के प्रयासों और ओण दिवस की जानकारी माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड श्री पुष्कर सिंह धामी को दी।इन प्रयासों की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री द्वारा " शीतलाखेत माडल" को राज्य के अन्य हिस्सों में भी दोहराने की घोषणा की।
*शीतलाखेत माडल*
शीतलाखेत माडल के मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं -
1 - जंगलों विशेषकर मिश्रित जंगलों का जल स्त्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और संवर्धन की दृष्टि से विशेष महत्व है। इसलिए इन्हें आग और नुकसान से बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे।
2 - घास, पीरूल, लकड़ी, छिलका, गुलिया, लीसा, तख्ते, बल्ली , हवा और पानी लेते समय जंगल जनता का है तो जंगल में आग लगने पर और नुकसान होने के समय भी जंगल जनता का ही है।
3 - दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों, सीमित संसाधनों के कारण वन विभाग के लिए अकेले जंगलों को आग और नुकसान से बचाना संभव नहीं है ऐसे में जनता को स्वयं आगे आकर अपने जंगलों को बचाने के लिए वन विभाग को सहयोग करना चाहिए।
4 - वनाग्नि जल स्त्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।वनाग्नि की घटनाओं को रोकने और वनाग्नि नियंत्रण में वन विभाग को सहयोग देने में महिला मंगल दलों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है।
5 - चूंकि घास,बिछावन, जलौनी लकड़ी,चारा पत्ती के लिए महिलाओं को नियमित रूप से जंगल जाना पड़ता है और जंगल में आग लगने से महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है ऐसे में वन क्षेत्रों से लगे सभी गांवों में महिला मंगल दलों का गठन/पंजीकरण कर उन्हें आर्थिक सहायता देकर उन्हें वनों की सुरक्षा से जोड़ने के बेहतर परिणाम मिले हैं।
6 - ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध और व्यवस्थित कर जंगलों में आग लगने की घटनाओं में 90% तक कमी लाई जा सकती है। वन विभाग, ग्राम पंचायत,राजस्व विभाग, शिक्षा विभाग,वन पंचायत के परस्पर सहयोग से प्रतिवर्ष मार्च महीने में ही ओण जलाने की कार्रवाई पूरी कर ली जानी चाहिए और 1 अप्रैल को हर ग्राम सभा में ओण दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए इस दिन मानव जीवन में जंगलों के महत्व और वनाग्नि से जंगलों को हो रहे नुकसान पर गोष्ठी, विचार विमर्श किया जाना चाहिए। इसके साथ ही जंगल से सटे जिन इलाकों में पलायन आदि कारणों से घास नहीं काटी जा रही है उन इलाकों में दिसंबर और जनवरी माह में ठंडा फुकान कर घास को जला दिया जाये।
7 - आग लगने की सूचना मिलने पर त्वरित कार्रवाई हेतु प्रत्येक बीट में एक क्रू स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता है।
जंगल में आग लगने पर निकटवर्ती क्रू स्टेशन तक सूचना पहुंचाने के लिए एक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए जिसमें शिक्षा विभाग, ग्राम पंचायत,राजस्व विभाग महिला मंगल दल और वन विभाग शामिल हों।
8 - वनाग्नि प्रबंधन की दृष्टि से पहला आधा घंटा बहुत महत्वपूर्ण है पहले आधे घंटे में आग बुझाने के प्रयास आरंभ किए जाने पर आग को नियंत्रित करने और नुकसान को सीमित करने की संभावना बहुत अधिक होती हैं।
आग लगने के पहले आधे घंटे में त्वरित कार्रवाई करने के लिए ग्राम वन समितियों का गठन किया जाना चाहिए जिसमें वन विभाग,राजस्व विभाग, ग्राम पंचायत,वन पंचायत और महिला मंगल दलों को शामिल किया जाना चाहिए। इस समिति को आग बुझाने के लिए रैक, पानी की बोतल,हैड लैंप,जूते और वायरलेस सेट दिये जाने चाहिए।
प्रथम पंक्ति में आग बुझाने का/फायर लाईन बनाने का काम कर रहे लोगों को समय समय पर भोजन, पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए।थकान लगने पर प्रथम पंक्ति में लगे लोगों को प्रतिस्थापित करने के लिए दूसरा दल तैयार रखना चाहिए।
9 - शीतला खेत क्षेत्र में बांज आदि पेड़ों का कृषि उपकरणों के लिए कटान रोकने में वी एल स्याही हल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।वनाग्नि से पौधारोपण को होने वाले अपूर्णनीय नुकसान को देखते हुए पौधारोपण पर खर्च की जा रही धनराशि से जंगलों से लगे सभी गांवों में ग्रामीणों को वैकल्पिक कृषि उपकरण जैसे वी एल स्याही हल, कम कीमत पर खाना पकाने की गैस दिये जाने चाहिए ताकि ग्रामीणों की जंगलों पर निर्भरता कम हो और ए एन आर पद्धति से जंगलों का विकास किया जा सके।
10 - फायर वाचर्स, दैनिक श्रमिकों और वन बीट अधिकारियों की वनाग्नि नियंत्रण में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है।इनका मनोबल बढ़ाने के लिए इनके लिए उचित मानदेय, भोजन, वर्दी, आने जाने के लिए वाहन सुविधा तथा अच्छी आवास व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए। फायर वाचर्स को फायर सीजन के बाद जागरूकता अभियान, फायर लाईन की सफाई, रास्तों के रख रखाव,मानव वन्य जीव संघर्ष न्यूनीकरण जैसे कार्यक्रमों से जोड़ने की जरूरत है।
11 - वनाग्नि नियंत्रण में फायर लाईन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है।साफ, सुथरी और चौड़ी फायर लाईन होने पर आग को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने से रोकना आसान होता है। राज्य के जंगलों में हजारों किलोमीटर लंबी फायर लाईन बनी हुई है परन्तु उचित देखरेख के अभाव में अधिकांश फायर लाईन पेड़ों, झाड़ियों से ढक गई हैं जिसके चलते आग को फैलने से रोकने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। फायर लाईन में उग आए पेड़ों और झाड़ियों को हटाने की जरूरत है।
पुरानी फायर लाईनों की सफाई और आवश्यकतानुसार नयी फायर लाईनों का निर्माण किया जाना, जंगलों को लंबे समय तक आग से सुरक्षित रखने की दृष्टि से बेहद जरूरी है।
12 - वनाग्नि नियंत्रण में आग बुझाने के दौरान कभी कभी दुर्घटना के कारण वन कर्मी, फायर वाचर्स, दैनिक श्रमिक और ग्रामीण घायल हो जाते हैंऐसे मामलों में न्यूनतम 15 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा होना चाहिए।
शीतलाखेत क्षेत्र मे वन विभाग और जनता द्वारा परस्पर सहयोग और तालमेल बनाकर महज बीस सालों में लगभग 1100 हैक्टेयर अवनत वन क्षेत्र को मिश्रित जंगल में बदलने में सफलता पाई है और ऐसा ही काम राज्य के हर हिस्से में किया जा सकता है।राज्य सरकार का शीतलाखेत माडल को राज्य के अन्य हिस्सों में ले जाने का निर्णय राज्य के जल स्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।
गजेन्द्र पाठक,
संस्थापक संयोजक, स्याही देवी विकास मंच, शीतलाखेत
ये लेखक के निजी विचार हैं ।
( लेखक गजेन्द्र पाठक वर्तमान समय में उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग में फार्मेसिस्ट के पद पर कार्यरत हैं )
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